आप में से ज्यादातर लोगों ने 10th और 12th क्लास में गणित की किताब तो पढी ही होगी अगर आपने स्कूल टाइम में गणित पढ़ा होगा तो आपको एक लेखक के बारे में तो पता ही होगा. आर डी शर्मा जिन्होंने टेंथ ट्वेल्थ के लिए कई किताबें लिखी हैं. यह कोई आश्चर्य करने वाली बात नहीं है कि आज तक बहुत सारे स्टूडेंट आर डी शर्मा का पूरा नाम नहीं जानते हैं.
इनके बारे में जानना तो बहुत दूर की बात है. लेकिन हम और आप बचपन में उनकी किताबें बड़े ही चाव से पढ़ते थे लेकिन उनके बारे में हमें थोड़ी सी भी जानकारी नहीं है. लेकिन आज के इस पोस्ट में हम आपको आर डी शर्मा की जिंदगी के ही बारे में ही वाले हैं.
ज्यादातर लोग नहीं जानते पूरा नाम : आर डी शर्मा अभी तक 25 किताबें लिख चुके हैं और इनकी ज्यादातर किताबों पर इनका नाम आर डी शर्मा ही लिखा है. यही वजह है ज्यादातर बच्चे इनका असली नाम नहीं जानते हैं बता दें, आर डी शर्मा का पूरा नाम रवि दत्त शर्मा है और इनका जन्म राजस्थान के बहरोड जिले के एक छोटे से गांव में हुआ था.
छोटे से गांव से निकलकर मैथ के इतने बड़े जानकार बनने के पीछे आर डी शर्मा की कहानी इतनी आसान नहीं थी शुरुआती दौर में आर डी शर्मा का जीवन बेहद ही मुश्किल परिस्थितियों से बीता था. आर डी शर्मा एक सामान्य किसान परिवार से ताल्लुक रखते थे लेकिन इनके पिता भले ही पढ़े-लिखे नहीं थे
लेकिन वह हमेशा से ही वे अपने बच्चों को पढ़ाते थे रात में जैसे आम तौर पर बच्चे सो जाते हैं. लेकिन इनके लिए इनके पिता ने एक नियम बनाया था और रूल यह था कि जब तक आरडी अपने पिता को 40 तक पहाड़े नहीं सुना देते थे
पिता ने कर्जा लेकर दी थी फीस : तब तक इनको सोने नहीं दिया जाता था कक्षा 9 में ही आर डी शर्मा को 40 तक पहाड़े याद हो गए थे और वर्गमूल घनमूल मैं भी आरडी शर्मा की पकड़ अच्छी हो गई थी इन सब चीजों को देखते हुए यह आसान दिखता है कि आरडी हमेशा ही अपनी क्लास के मैथ में टॉपर रहे होंगे.
आर डी शर्मा का स्कूल तो जैसे तैसे कट गया था लेकिन जब ग्रेजुएशन की बारी आई तो इनकी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि ये कॉलेज की फीस दे सकें. इसके लिए आर डी शर्मा के पिता ने कर्जा लेकर इनकी फीस भरी थी इसके बाद उन्होंने अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई की.
इन्होने एक मीडिया वेबसाइट से बात करते हुए एक बार बताया था कि ग्रेजुएशन के दौरान उन्हें काफी सारी परेशानियां उठानी पड़ी थी. आर्थिक परेशानी यहां तो पीछा छोड़ ही नहीं रही थी
महसूस हुई समस्या तो लिख डाली किताब : इसके साथ ही वे बताते जब मैं पीएचडी कर रहा था तो हमारे सर हमें गणित पढ़ाते थे लेकिन जब उनकी मृत्यु हुई तो हमारे लिए यह समस्या बन गई थी अब हमको गणित कौन पढायेगा और सबसे बड़ी बात थी कि जिस लेवल पर आर डी शर्मा पढ़ाई कर रहे थे
उस की किताबें भारत में बहुत कम मिलती थी गिनी चुनी किताबों में ही सवाल और उत्तर आसानी से दिए जाते थे बस यही समस्या आर डी शर्मा को खटक गई और उन्होंने सोचा कि मेरी तरह देश में लाखों छात्र परेशान होते होंगे. क्यों न कोई किताब लिखी जाऐ और उससे छात्रों का भला हो सके. साल 1986 में आर डी शर्मा की पहली किताब प्रकाशित हुई थी.
देश में पॉपुलर हैं किताबें : कश्मीर से कन्याकुमारी तक के स्कूलों में आर डी शर्मा की पढ़ाई जाती थी यहां तक कि ग्रेजुएशन में भी काफी साल तक आर डी शर्मा किताबें पढ़ाई गई है. वर्तमान समय में आर डी शर्मा गणित के ज्ञाता बन चुके हैं. वर्तमान समय की बात करें तो ये दिल्ली के एक कॉलेज में बतौर वाइस प्रिंसिपल कार्य कर रहे हैं.