पिता बेचते हैं सब्जी, लेकिन MPHC में टॉप कर बेटी बन गई सिविल जज, जानिए कैसे हासिल की सफलता

कहते हैं अगर कोई सच्चे दिल से परिश्रम करता है तो उसको एक दिन सफलता मिल ही जाती है. आपके अंदर बस सफलता पाने की चाह और जुनून कूट-कूट कर भरा होना चाहिए. आज के इस पोस्ट में हम आपको एक ऐसी ही बेटी के बारे में बताने वाले हैं.

जिसके पिता तो सब्जी बेचते थे लेकिन उस लड़की के हौसले आसमान में उड़ने के थे जी हां, हम बात कर रहे हैं सिविल जज एग्जाम में पांचवा स्थान हासिल करने वाली अंकिता नागर के बारे में. मध्यप्रदेश के इंदौर से ताल्लुक रखने वाली अंकिता के माता-पिता सब्जी बेचकर अपने घर का पालन पोषण करते हैं.

लेकिन अब अंकिता ने एमपीएससी की परीक्षा में पांचवां स्थान प्राप्त कर घरवालों को गर्व करने का मौका दिया है. अब अंकिता के घर में खुशी का माहौल है अंकिता बताती हैं कि जिस दिन उनका रिजल्ट आया था उस दिन वह काफी ज्यादा चिंतित हो रही थी लेकिन जैसे ही उन्हें पता चला कि रिजल्ट में उनकी 5 वी रैंक आई है और वह सिविल जज बन चुकी है. तो तुरंत वह अपने पापा की रेहडी के पास गई और पापा से कहा पापा में जज बन गई, आइए अंकिता के बारे में विस्तार से जानते हैं.

आर्थिक स्थिति कमजोर, लेकिन हौसले बुलंद : 

कहते हैं अगर आपकी आर्थिक स्थिति कमजोर हो तो आपके हौसले बुलंद होने चाहिए. हौसले अगर आपके बुलंद होंगे तो आपकी मंजिल हासिल हो ही जाती है. ऐसी ही कुछ कहानी है अंकिता नागर की, अंकिता बताती हैं कि शुरू से ही उनकी आर्थिक स्थिति खराब थी

घरवाले सब्जी बेचकर अपना गुजारा करते थे लेकिन मुझे बचपन से ही लगता था कि अगर ऐसे ही सब्जी बेचकर हमें गुजारा करना है तो हम कभी आगे नहीं बढ़ सकते..और हमारी स्थिति ऐसी की ऐसी ही रहेगी. अंकिता बताती हैं कि जब मुझे पढ़ाई से वक्त मिलता था तो मैं भी मम्मी पापा के साथ काम करती थी.

बचपन से है पढ़ाई की ललक : अंकिता नागर के माता-पिता बताते हैं अंकिता बचपन से ही काफी होनहार लड़की थी और स्कूल में सबसे ज्यादा मार्क्स उसके ही आते थे पढ़ाई में तो अंकिता के अच्छे नंबर आते ही तेज के साथ ही वह खेलों में भी पार्टिसिपेट करती थी. हम भी उसका पूरा सपोर्ट करते थे लेकिन पैसे की वजह से हमें कई बार परेशानियां भी होती थी लेकिन अब हमारी बेटी जज बन चुकी है तो हमें उस पर काफी गर्व है.

भाई करता है मजदूरी : अंकिता का बड़ा भाई रेत मंडी में मजदूरी करता है अंकिता बताती हैं कि भाई ने भी उनका पूरा सपोर्ट किया है. वहीं अंकिता की एक छोटी बहन है जिसकी शादी कर दी गई थी अंकिता पढ़ना चाहती थी तो उन्होंने शादी नहीं की

और तब से ही वह रोजाना 10 से 12 घंटे पढ़ती थी और अब आकर उन्हें इस मेहनत का फल मिल चुका है. अंकिता कहती है उनकी सफलता में मम्मी पापा के साथ साथ भाई का भी अहम योगदान है और इन तीनों की मेहनत की वजह से ही आज मैं इस मुकाम पर पहुंची हूँ.

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