किन्नर, जो भारतीय समाज में एक ऐसी पहचान है जिसे दुआ और बद्दुआ के नजरिए से ही देखा जाता है। ट्रांस’जेंडर और थर्ड जेंडर इन नाम से भी किन्नर को जाना जाता है। आपको बता दें कि भारत में किन्नर का इतिहास बहुत पुराना है। मुगलों के समय पर भी किन्नर को रानियों की देखभाल के लिए रखा जाता था।
लेकिन दोस्तों क्या आपने कभी ऐसा सोचा है कि आखिर किन्नर की पहचान जन्म के समय पर कैसे की जाती है। अगर आप भी इस सवाल का जवाब पाना चाहते हैं तो इस लेख को अंत तक पढ़िए।
दरअसल भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे एशियाई देशों में किन्नरों का जीवन बेहद अलग होता है। उनके जीवन की गहराई को समझना एक आम इंसान के लिए थोड़ा सा मुश्किल है। यहां पर किन्नर औरत का रूप धारण करके एक जगह से दूसरी जगह टोलियों में घूमते हैं। और किसी आम इंसान के घर में बयां शादी के मौके पर उनको दुआ देते हैं।
दोस्तों आपको बता दें किन्नर तो दुनिया में सारी जगह होते हैं हर देश में होते हैं लेकिन वह एशिया से अलग जीवन जीते हैं। दूसरे देशों में वह एक आम इंसान की तरह जीवन बिताते हैं और बच्चों को गोद भी लेते हैं। ताकि वह अपना वंश आगे बढ़ा सकें। वहीं दूसरी तरफ भारत में एक उम्र का पड़ाव पार करते ही किन्नरों की पहचान करके उन्हें उनकी टोलियों में शामिल कर दिया जाता है।
वैसे तो एक बच्चे को देख कर बता पाना कि वह किन्नर है या नहीं काफी मुश्किल होता है। लेकिन जैसे-जैसे समय के साथ उनके शारीरिक अंग का विकास नहीं होता है तो यह बात की पुष्टि हो जाती है कि वह किन्नर है भी या नहीं।
आपको बता दें कि किन्नर भी दो प्रकार के होते हैं। एक वह जो पुरुष किन्नर होते हैं। जिनके अंग की पूरी तरह से विकास नहीं हो पाता है। और दूसरे महिला किन्नर होते हैं। महिला किन्नर में मासिक चक्र की भी कार्यशैली नहीं होती हैं। इसलिए वह बच्चों को भी जन्म देने में असमर्थ होते हैं।